भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बाड़ / पवन चौहान" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पवन चौहान |अनुवादक= |संग्रह=किनार...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
लो फिर आ गया ‘काफल’
+
मेरी इस खेत के बाड़ ने
लाल, मैरुन रंग का
+
संभाल रखा है बहुत कुछ
‘छड़ोल्हु’ में सजा
+
दे रखी है सुरक्षा
हर किसी के मुँह में जाने को तैयार
+
आवारा डंगरों, कुक्कड़ों
 +
और उन चोरटे लोगों से भी
 +
जिनकी नजर हमेशा रहती है
 +
हमारी फसल,  साग- सब्जी
 +
फल और फूलों पर भी
  
ऊँचे पहाड़ से उतरी
+
खेत पर सजी इस बाड़ की  
नीलू की माँ
+
हर गाँठ पर लगी है
हर साल लाती है काफल
+
मेरी माँ के चादरु
बेचती है उन्हे षहर
+
और पिता के साफे की लीरें
और मैदान में बसे गाँव में
+
माँ की स्नेहिल छाया ने
 +
दे रखी है मजबूती सब लकड़ियों को
 +
और पिता की छत्रछाया में  
 +
बाड़ खड़ी है सीना तान
 +
हर बाधा से लड़ने को तैयार
  
लोगों के लिए मात्र यह फल है
+
इस बाड़ ने छुपा रखा है
पर नीलू की माँ के लिए
+
और भी बहुत कुछ
कुदरत का यह तोहफा सौगात है
+
मेरे नन्हे बेटे की अठखेलियाँ
सौगात है
+
बाड़ को बुनते-बुनते जो
उसके और उसके परिवार के लिए
+
निकल आई थी खेत पर
‘केबीसी’ के किसी एपीसोड में जीते
+
खेलती रही थी
कम से कम रुपए जितनी
+
बेटे के साथ
 +
गोधूली पलों तक
 +
खेत की धूल में
 +
दिलाती रही थी हमें
 +
खीझ और खुशी साथ-साथ
 +
उलझाती रही थी हमें
 +
हर गाँठ के कसाव के साथ-साथ
 +
बाड़ के पूरा होने तक
  
डेढ़-दो महीने के इस सीजन में  
+
बाड़ लगने की खुशी में
कमा लेती है वह गुजारे लायक
+
लाड़ी  मेरी  कहे बगैर ही
अपने परिवार के
+
पिला रही है चाय बार-बार
जोड़ लेती है इन रुपयों से
+
क्योंकि अब नहीं चढ़नी पड़ेगीं उसे
अपने परिवार की जरुरत की चीजें
+
तीन मंजिला घर की
 +
थका देने वाली सीढ़ियाँ
 +
वह सुखाएगी अब कपड़े इसी बाड़ पर
 +
रुकी रहेगी उसकी टांगों की पीड़ा भी
 +
फूदकेगी चिड़िया भी अब इसी बाड़ पर
 +
गाएगी मीठे गीत वह
 +
हम सबके साथ
 +
काकड़ी,  कद्दू,  करेले,  घीए की बेलें
 +
बाड़ का हाथ थामे
 +
चढ़ पाएगीं अब
 +
ऊँचे पेड़ की नाजुक टहनी तक
 +
नापेंगी वे भी आसमान की बुलंदी
 +
माँ की ममता और
 +
पिता के हौंसले ने
 +
संभाल रखा है  
 +
सब लकड़ियों को एक साथ
 +
जैसे ताउम्र संभाला उन्होने
 +
अपना परिवार  
 +
वे यहाँ भी डटे हैं
 +
मुस्तैदी से
 +
और बाड़ मेरी गर्व से खड़ी
 +
कर रही है वादा
 +
हर फूल,  फल,  फसल और सब्जी से
 +
उनकी सुरक्षा और खुशहाली का।
  
नीलू की माँ खुश है
 
इस बार भर गया है जंगल
 
काफल के दानों से
 
हर पेड़ हो गया है सुर्ख लाल
 
इस बार खूब होगी आमदन
 
जुटा लेगी वह इस बार
 
अपनी जरुरत का हर सामान
 
  
पिछले बर्श की भांति नहीं खलेगी
+
'''नोटः लाड़ी अर्थात पत्नी
रुपयों की कमी
+
'''</poem>
अपने बेटे को ‘ख्योड़’ मेले के लिए देगी वह
+
खुले मन से रुपए
+
पति के लिए लाएगी वह
+
एक बढ़िया-सी व्हील चेयर 
+
अपने लिए भी खरीदेगी वह
+
अपनी पसंद का एक बढ़िया-सा सूट
+
 
+
वह बेच रही है काफल
+
घर-घर
+
बिना समय गँवाए
+
जानती है वह
+
ज्यादा दिन की नहीं है इसकी रौनक
+
कुछ ही दिनों में
+
फिर लौट आएगी उसकी
+
पुरानी दिनचर्या
+
 
+
जाएगी वह फिर
+
घर-घर
+
माँजेगी लोगों के जूठे बर्तन
+
धोएगी उनके मैले कपड़े
+
थकी हुई लौटेगी घर जब
+
नहीं होगी उसके चेहरे पर वह रौनक
+
जो काफल बेचने की थकान के बाद
+
रोज होती थी शाम को
+
जब करती थी वह काफल के दानों का हिसाब
+
नोटों की बढ़ती हर परत को खोलती हुई।
+
 
+
 
+
नोटः-1. ‘काफल’ हिमाचल का एक जंगली फल है जो गर्मी के मौसम में लगता है। लोग इसे बड़े चाव से खाते हैं। जंगल के किनारे रहने वाले गरीब लोग इन दिनों इसे घर-घर बेचकर अपनी आर्थिकी को सहारा देते हैं।
+
2. ‘छड़ोल्हु’- बाँस की बनी हुई टोकरी
+
3. ‘ख्योड’- हिमाचल के मण्डी जिले का एक प्रसिद्ध पहाड़ी मेला
+
</poem>
+

04:06, 8 अगस्त 2016 के समय का अवतरण

मेरी इस खेत के बाड़ ने
संभाल रखा है बहुत कुछ
दे रखी है सुरक्षा
आवारा डंगरों, कुक्कड़ों
और उन चोरटे लोगों से भी
जिनकी नजर हमेशा रहती है
हमारी फसल, साग- सब्जी
फल और फूलों पर भी

खेत पर सजी इस बाड़ की
हर गाँठ पर लगी है
मेरी माँ के चादरु
और पिता के साफे की लीरें
माँ की स्नेहिल छाया ने
दे रखी है मजबूती सब लकड़ियों को
और पिता की छत्रछाया में
बाड़ खड़ी है सीना तान
हर बाधा से लड़ने को तैयार

इस बाड़ ने छुपा रखा है
और भी बहुत कुछ
मेरे नन्हे बेटे की अठखेलियाँ
बाड़ को बुनते-बुनते जो
निकल आई थी खेत पर
खेलती रही थी
बेटे के साथ
गोधूली पलों तक
खेत की धूल में
दिलाती रही थी हमें
खीझ और खुशी साथ-साथ
उलझाती रही थी हमें
हर गाँठ के कसाव के साथ-साथ
बाड़ के पूरा होने तक

बाड़ लगने की खुशी में
लाड़ी मेरी कहे बगैर ही
पिला रही है चाय बार-बार
क्योंकि अब नहीं चढ़नी पड़ेगीं उसे
तीन मंजिला घर की
थका देने वाली सीढ़ियाँ
वह सुखाएगी अब कपड़े इसी बाड़ पर
रुकी रहेगी उसकी टांगों की पीड़ा भी
फूदकेगी चिड़िया भी अब इसी बाड़ पर
गाएगी मीठे गीत वह
हम सबके साथ
काकड़ी, कद्दू, करेले, घीए की बेलें
बाड़ का हाथ थामे
चढ़ पाएगीं अब
ऊँचे पेड़ की नाजुक टहनी तक
नापेंगी वे भी आसमान की बुलंदी
माँ की ममता और
पिता के हौंसले ने
संभाल रखा है
सब लकड़ियों को एक साथ
जैसे ताउम्र संभाला उन्होने
अपना परिवार
वे यहाँ भी डटे हैं
मुस्तैदी से
और बाड़ मेरी गर्व से खड़ी
कर रही है वादा
हर फूल, फल, फसल और सब्जी से
उनकी सुरक्षा और खुशहाली का।


नोटः लाड़ी अर्थात पत्नी