भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"उम्मीद / पवन चौहान" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पवन चौहान |अनुवादक= |संग्रह=किनार...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
04:12, 8 अगस्त 2016 के समय का अवतरण
चार दिवारी की सोच
दफन कर देती है
नया कर पाने की उम्मीद
कुंए के मेंढक की परछाई
घुमाती रहती है सुइयों को उन्ही
घिसी-पिटी राहों पर
उसी थकी-हारी चाल से
कदमों का वही सीमित सा सफर
पस्त कर देता है
पहाड़ पर चढ़ने का हौंसला
सुने सुनाए, रटे रटाए शब्दों की बोरियत
खीझाती रहती है कलम को भी
कानों में बजती एक ही धुन
चीरती है परदों को
बना देती है बहरा
सोच को मिलेगी परवाज़ कभी
उम्मीद है
कुंए का मेंढक फूदकेगा खूले आसमान तले
कदम मापेंगें नए, विस्तृत रास्ते
शब्द स्वतंत्र होंगे
और कानों में गुंजेगी
एक नयी, प्यारी
मीठी-सी धुन।