भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"झुलसता बचपन और मैं / नीता पोरवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीता पोरवाल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

02:23, 22 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण

जेठ बैशाख में
रात खत्म होने से
कुछ पहले ही
आ धमकते हैं उजियारे

अँधेरा दूर करने की जिद में
रौबदार सुर्ख आँखें लिए बिछा देते हैं इस
छोर से उस छोर तक धूप ही धूप

देखने लगती हूँ मैं
हवा संग खिलखिलाती झूमती
अभी अभी जन्मी उस नन्ही दूब को ,जो
सांझ तक झुलसा हुआ पाएगी अपनी
मासूमियत को , अपने बचपने को
मैं लेती हूँ साँस जिसमें
घुले हुए हैं कई रंग, घुटन के
उमस के, उस पीड़ा के क्योंकि

मैं जानती हूँ कि मैं हूँ
अपराधी उस दूब की जिसने
बचपने को झुलसते हुए मूक देखते रहने की