भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"उञायल बुखायल रूहु / हरि दिलगीर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरि दिलगीर |अनुवादक= |संग्रह=पल पल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

02:20, 8 अक्टूबर 2016 के समय का अवतरण

अझल सूंहं जे खेत अंदर,
जिते आहि जीवन जो झरिणो, उते ई,
रिवाजनि ऐं रस्मुनि जो पिञिरो टंगियलु आ,
उन्हीअ में अची आहि फाथो,
पखीअड़ो (उहो रूहु इन्सान जो आ)
उहो खेत में आ बुखायलु,
ऐं झरिणे अॻियां आ उञायलु।
छुटण जो तरीक़ो नज़र में न आहे,
उते ई,
उञुनि ऐं बुखुनि में,
मरी नेठि वेंदो।