भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सीता अति कृस गात / हनुमानप्रसाद पोद्दार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

11:52, 29 अक्टूबर 2016 के समय का अवतरण

(राग देश)
सीता अति कृञ्स गात, सुमिरत मन रघुबंस-मनि।
 आयहु मन इतरात, दसमुख मंदोदरि सहित॥
 अधम निलज्ज अपार, कहे बचन निंदित अमित।
 सीता दै फटकार, बोली-’चुप रहु नीच ! खल’॥
 रावन कर अति क्रञेध, कर अति कठिन कृञ्पान से।
 धायहु असुर अबोध, सीतहि मारन मंद-मति॥
 मयतनया धरि हाथ, अति बिनीत कहि नीति सुचि।
 ग‌ई ले‌इ निज साथ, कोह-मोह-रत रावनहिं॥