भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हरि सम हरि ही / हनुमानप्रसाद पोद्दार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
01:41, 30 अक्टूबर 2016 के समय का अवतरण
(राग पीलू-तीन ताल)
हरि सम हरि ही हितू हमारौ।
आश्रय एक दीन-पतितन कौ, सहज सहाय, सहारौ॥
अवगुन-दोष गिनत नहिं एकहु सरनागत के भारी।
निज अवलंबन देय, मिटावत जन की पीड़ा सारी॥
अभय करत निज दया-दान दै, भय-विषाद हर सारे।
पठवत अंत दिव्य निज धामहिं, निज सुभाव सौं हारे॥