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हे दीन दयाल कृपाल गुपाल,
बिना तुम संकट माँहि समाज।
हम दीन दुखी अति ही किसान,
हैं वसनहीन घर में न नाज॥
कहें ‘नाथ’ टेर कर ना अबेर,
अपना सा फिर करदे सुराज।
अभिमानन के कर मान चूर,
आ भारत की रख लाज आज॥