भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आगे खुला सवेरा है / प्रमोद तिवारी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद तिवारी |अनुवादक= |संग्रह=म...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:47, 23 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

सच है बहुत अंधेरा है
तूफानों ने घेरा है
बीच राह का डेरा है
फिर भी साथी हिम्मत बांधो
आगे खुला सवेरा है।

सीमाओं में बंधा-बंधा
जल का तेवर सधा-सधा
चाहे जितना तेज बहे
पर निर्झर सा कहां बजा
माना सागर गहरा है
युगों-युगों से ठहरा है
सीमाओं का पहरा है
फिर भी साथी हिम्मत बांधो
आगे खुला सवेरा है