भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सब भाँति दैव प्रतिकूल... / भारतेंदु हरिश्चंद्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र }} {{KKCatKavita}} {{KKAntholo...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:08, 4 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण
सब भाँति दैव प्रतिकूल होय यहि नासा।
अब तजहु बीरवर भारत की सब आसा।।
अब सुख सूरज को उदय नहीं इत ह्नैहै।
मंगलमय भारत भुव मसान ह्नै जै है।।