भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रप्पूँ-रप्पूँ / रमेश तैलंग" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तैलंग |अनुवादक= |संग्रह=मेरे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
17:29, 15 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण
आज हो गया रिक्शा पंचर,
बोझ धरे बस्ते का सिर पर,
रप्पूँ-रप्पूँ, पैदल चलते-
चलते घर तक आया हूँ।
मम्मी, तुमको क्या बतलाऊँ,
भूख लगी है, पहले खाऊँ,
देखो, अपना लंच अभी तक
पूरा न खा पाया हूँ।
और सुनो, वह गुड्डी है ना,
उसकी बुक वापस है देना,
होमवर्क के चक्कर में
अब तक न लौटा पाया हूँ।