भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दशहरे का मेला / रमेश तैलंग" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तैलंग |अनुवादक= |संग्रह=मेरे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
17:51, 15 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण
देखा जी हमने दशहरे का मेला।
दशहरे के मेले में देखे तमाशे।
दशहरे के मेले में खाए बताशे।
दशहरे के मेले में की मौज-मस्ती।
मेला था जैसे उजालों की बस्ती।
देखा जी हमने दशहरे का मेला।
दशहरे के मेले में थे ऊँचे झूले।
चढ़े कोई उन पर तो अंबर को छू ले।
दशहरे के मेले में रौनक लगी थी।
सोता वहाँ कौन दुनिया जगी थी।
देखा जी हमने दशहरे का मेला।