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"वसंत का गीत / रमेश तैलंग" के अवतरणों में अंतर
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ऋतुओं के राजा,
वसंत महाराजा!
कुरता नया एक
हमें भी दिला जां
कपड़े पुराने ये
हमको न भाएँ
किस-किससे अपना ये
मुखड़ा छिपाएँ?
बात शरम की है
आ जा, अब आ जा।
फागुन महीना,
उदासी है छाई,
भूखा बिछौना है
प्यासी रजाई,
आँखों से निंदिया
उड़ाकर यूँ न जा।
तुमको नहीं है
कमी कोई प्यारे,
नदियाँ, हवा, पेड़
सब हैं तुम्हारे,
सपने हमारे भी
आकर सजा जा।
ऋतुओं के राजा,
वसंत महाराजा!