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"स्त्री / ब्रजेश कृष्ण" के अवतरणों में अंतर
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स्त्री की आँखें होती हैं
उसकी खिड़कियाँ
वह दूर तक देखती हैं यहाँ से अंतरिख
अंतरिक्ष का विस्तार
विस्तार में चिड़िया
चिड़िया की चोंच में तिनका
तिनके में घर
स्त्री कभी नहीं भूलती
तिनके का घर
स्त्री की आँखें होती हैं
उसकी खिड़कियाँ
वह दूर तक देखती है यहाँ से पृथ्वी
पृथ्वी का गर्भ
गर्भ में बीज
बीज में समाहित वृक्ष
वृक्ष में सोया स्वप्न
स्त्री कभी नहीं भूलती
वृक्ष का स्वप्न
स्त्री लौटती है अपनी खिड़कियों से
वह दूर तक देखतीहै खु़द को
स्त्री जानती है अंतरिक्ष का सुख
मगर सहती है दूर तक
पृथ्वी का दुःख।