भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ग़नीमत है / ब्रजेश कृष्ण" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ब्रजेश कृष्ण |अनुवादक= |संग्रह=जो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:31, 17 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण
बरसों बाद वहाँ जाते हुए
मुझे डर था कि वहाँ की नदी
खो चुकी होगी अपना सौन्दर्य
लेकिन ग़नीमत है कि
नदी उतनी ही सुन्दर थी और युवा भी
बरसों बाद वहाँ जाते हुए
मुझे डर था कि वह पेड़
खो चुका होगा अपनी छाया
लेकिन ग़नीमत है कि
वहाँ पेड़ था और उसकी छाया भी
बरसों बाद वहाँ जाते हुए
मुझे डर था कि उसकी आँखों में
अब नहीं होगी मेरी कोई पहचान
लेकिन ग़नीमत है कि
वहाँ मेरी पहचान थी और मुझसे मिलने की खु़शी भी
इतने वर्षों बाद
जबकि
यहाँ मैं खो चुका हूँ बहुत कुछ
अगर वहाँ बची है
नदी
पेड़
और उसकी आँखों में खु़शी
तो ग़नीमत है कि
मैंने कुछ नहीं खोया।