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"महुए का पेड़ / ब्रजेश कृष्ण" के अवतरणों में अंतर
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11:42, 17 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण
बरसों से नहीं देखा मैंने
महुए का पेड़
मैं भूल चुका हूँ
उसका आकार, पत्तियाँ
उसका हरापन
मदमाती गंध
बस याद है
बरसों पहले
महुए के पेड़ और उसके नीचे खड़ी
महुआ हुई स्त्री की संयुक्त हँसी
सुना है लकड़हारों से मैंने
कि महुए के पेड़
अब हँसते नहीं हैं
फिर कैसे पहचानूँगा मैं
महुए के पेड़ को।