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"बच्चे और बूढ़े / ब्रजेश कृष्ण" के अवतरणों में अंतर

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11:43, 17 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण

बच्चों को क्रिसमस पर रचना था खेल
और उन्हें तलाश थी सांताक्लाज़ की
उन्होंने पूरे शहर के बूढ़ों को देखा और परखा
कईयों के पास वैसी ही लम्बी दाढ़ियाँ थीं
सिर पर रंग-बिरंगी टोपियाँ
कंधों पर तरह-तरह केथैले
और बड़ी-बड़ी जेबों वाले कोट
बच्चे घुस गये इन बूढ़ों के भीतर
मगर वे लौटे दुखी और निराश
क्योंकि ये सारे बूढ़े सचमुच के बूढ़े थे
समय की मार से पहले हुए बूढ़े
इसीलिए चिड़चिड़े, दुखी और निराश बूढ़े

शहर से निराश बच्चे
दूर जंगलों की ओर गये
और लापता हो गये सदियों पहले के समय में

सांताक्लाज़ की तलाश जारी है
बच्चे नहीं लौटे हैं अभी तक
व्यस्त शहर को यह पता भी नहीं है
कि मोमबत्तियाँ हाथ में लिये
शहर के बाक़ी बच्चे
बूढ़े हो रहे हैं बहुत तेज़ी से
चिड़चिड़े, दुखी और निराश बूढ़े।