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"यह शहर और मैं / ब्रजेश कृष्ण" के अवतरणों में अंतर
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11:50, 17 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण
आज से कोई तीस बरस पहले
जब आया था इस शहर में
तब काँख में महाभारत की पोथी दाबे
मुस्कराता हुआ मिला था शहर
युद्ध की छाया तो नहीं थी
पर उजाड़ बहुत था शहर
लोग कम थे, जगह बहुत थी
और तय था मेरी तरफ से
कि मौक़ा लगते ही लौट जाऊँगा
यहाँ से अपने शहर को
जो बहुत दूर था
कब और केसे उड़ता चला गया समय
इस ब्यौरे में जाने का वक़्त नहीं है
आज बहुत पीछे छूट चुकी है
पीछे की दुनियाँ
और तय हो चुका है
कि जब तक हूँ इस धरती पर
रहूँगा इसी शहर में
कहीं भी लौटना अब
नामुमकिन है मेरे लिए
महाभारत को काँख में दाबे हुए
किसी बुजु़र्ग की तरह
मेरे कंधे पर हाथ रखकर
आज कितने प्यार से बताता है मुझे यह शहर
कि अभिमन्यु को आता था
चक्रव्यूह में घुसना, लड़ना और मारा जाना
मगर लौटना तो बिल्कुल नहीं।