भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बये के घोसले / शिवबहादुर सिंह भदौरिया" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवबहादुर सिंह भदौरिया |अनुवादक=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:12, 17 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण

लग गये बबूल पर
नये-बये के घोंसले।

एक-तो बबूल
दूजे ताल के किनारे,
पुरवा दे झकोरे
पछुवा ताना मारे;
देख जाँय
झूमाझाम
जिनके पस्त हौसले।

सवार घन्नई पै-
कोई हाथ है पसारता,
पाल्हरें सिंघाड़े की-
इधर-उधर सँवारता,
देखता है
बार-बार,
गदबदायी कोंपले।

लुके छिपे नहा रही है
बादलों में बिजलियाँ,
ताल में कुमारियाँ
सिरा रही हैं कजलियाँ
उछालती हैं कीच
ये हैं:
मौजी मन के चोंचले।