भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नदी / श्रीप्रसाद" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीप्रसाद |अनुवादक= |संग्रह=मेरी...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:27, 20 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण

नदी गीत गाती, लहरियाँ उठाती
उमड़ती चली जा रही
बड़ी दूर से यह चली पर्वतों से
बड़े जोश में आ रही

मिली एक चट्टान, धक्का दिया झट
गई टूट चट्टान तब
मसलकर किया चूर, उसको मिटाया
दिखाई बड़ी शान तब

बनाए हरे खेत; धरती सजीली
न बाधा कहीं मानती
किये काम अच्छे, चलाचल-चलाचल
न रुकना कहीं जानती

कहीं धार चौड़ी, कहीं धार पतली
कहीं धार को मोड़ती
कहीं धार उथली, कहीं धार गहरी
नगर, गाँव, सब जोड़ती

नदी बह रही है यहाँ किस समय से
इसे कौन है जानता
नदी बह रही है हमारी, यही
बात हर एक पहचानता

नदी इस तरह ही बहेगी हमेशा
लहरियाँ उठाती हुई
यही धार होगी, किनारे यही
गीत ये गुनगुनाती हुई

नदी पर बना पुल, वहीं बैठकर
धार हम देखते रोज आ
बड़ी मौज से नाचती है नदी
और चलती नदी गीत गा।