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"आदमी को बनाओ / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी" के अवतरणों में अंतर
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न मंदिर बनाओ, न मस्जिद बनाओ
बनाना है तो आदमी को बनाओ।
गया बन अगर आदमी ही सही तो
वही होगा हर एक मंदिर हमारा;
वही होगा मस्जिद, वही होगा गुरुदुआरा।
बनेंगे असंख्यों यों पूजा के घर ये
इन्हीं को सँवारो इन्हीं को सजाओ॥1॥
इन्हीं की करो अर्चना-वन्दनाएँ
इन्हीं की करो प्रार्थनाएँ-दुआएँ;
इन्हीं के करो पाठ गुरुवाणियों के
इन्हीं के लिए सामवेदी ऋचाएँ।
इन्हीं की करो आरती थाल भर-भ्र
इन्हीं को नई ज्योति से जगमगाओ॥2॥
न मंदिर, न मस्जिद, न ये गुरुदुआरे
रहे आज पूजा के घर हैं हमारे;
बने स्वार्थ के और सत्ता के साधन
बने राजनीतिक अखाड़े हैं सारे।
अतः अब न इनको बनाने की सोचो
बनाना है तो आदमी को बनाओ॥3॥
8.4.92