भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"यात्रा / कुमार कृष्ण" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार कृष्ण |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:20, 8 मार्च 2017 के समय का अवतरण
जब आता है इस धरती पर मनुष्य
वह होता है निडर
नहीं जानता डर नाम की किसी चीज़ को
धीरे-धीरे लगता है डरने
धरती की हर चीज़ से
उसे डराते हैं उसके तमाम विश्वास
उसके सपने, रिश्ते, उसके अपने
टूट जाती है उसकी-
हिम्मत और हौसलों की लाठी
डरने लगता है वह अपनी ही परछाई से
डरता हुआ मनुष्य
कहीं से भी नहीं लगता मनुष्य।