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"क्या तुम बताओगी? / हरिपाल त्यागी" के अवतरणों में अंतर

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यहां न कोई बैक डोर,
 
यहां न कोई बैक डोर,
 
यहां न कोई शॉर्ट कट!
 
यहां न कोई शॉर्ट कट!
 
आओ पुल पर चलें
 
 
आओ, पुल पर चलें
 
वहीं से देख पाएंगे
 
टुनटुनिया पहाड़,
 
पत्थरों की संगीत-सभा,
 
पीछे मुड़ देखेंगे पूरा शहर एक साथ,
 
सामने बांदा का किला,
 
पुल पार ऊंचे एक टीले पर जुटे
 
मटमैले बच्चों से घर-
 
परस्पर सहारे पर टिके हुए,
 
धरे एक-दूसरे के कंधे पर खपरैली सिर
 
घाटी में झांकता हुआ गांव,
 
निर्वसन, श्यामा नदी केन
 
चुपचाप लेटी है बेखबर
 
आओ, पुल पर चलें।
 
 
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11:01, 21 मार्च 2017 के समय का अवतरण

कंधे पर टिका हुआ
ट्रंक मन भर का,
बिस्तर भी भारी है
पीठ पर बंधा हुआ।
सामने से आ रहा
गोरखा सैनिक एक।
पसीने से तर-ब-तर
हांफता-झपटता हुआ।

गुमखाल उतरा था
मिली न आखिरी बस
लैंस डाउन जाने का
पूछ रहा शॉर्ट कट।

नया-नया आया है,
उसे नहीं मालूम-
(दिल्ली नहीं है यह)
मंजिल तक पहुंचने का
यहां न कोई बैक डोर,
यहां न कोई शॉर्ट कट!