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"158 / हीर / वारिस शाह" के अवतरणों में अंतर

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चूचक सयाल ने लिखया रांझया नूं नढी हीर दा चाक उह मुंडड़ा जे
सारा पिंड डरे एस चाक कोलों सिर माहीया दे उस दा कुंडड़ा जे
असां जट ही जान के चाक लाया देइये त्राह जे जानिये गुंडड़ा जे
एडा गभरू घरों क्यों कढया जे लंडा नहीं कमजोर ना टुंडड़ा जे
सिर सोंहदिहां बोदिदां नढड़े दे कन्नीं लाडले दे बने बुंदड़ा जे
वारस शाह ना किसे नूं जानदा ए पास हीर दे रात दिन हुंदड़ा जे

शब्दार्थ
<references/>