भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"377 / हीर / वारिस शाह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:43, 5 अप्रैल 2017 के समय का अवतरण
अखी सामने चोर जे नजर आवे क्यों दुख विच आपनूं गालिए वे
मियां जोगीया झूठियां करे गलां घर होण तां कासनूं भालिए वे
अग बुझी नूं ढेरिआ<ref>बुझ रही आग को फूंक मारकर जलाना</ref> लख दीजन बिना फूक मारी नहीं बालिए वे
हीर वेखके तुरत पछाण लया हस आखदी बात समालिए वे
सहती पास ना खोलना भेत मूले शेर पास ना बकरी पालिए वे
देख माल चुरायके पया मुकर राह जांदड़े कोई ना भालिए वे
वारस शाह मिलखाइयां माल लधा चलो कुजियां बदर<ref>कसम उठाना</ref> पिवालिए वे
शब्दार्थ
<references/>