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हे सृजन आलोक रेख प्रभाकर
जाज्वल्यमान कर सरसिज कर अंबर
अपने शर से पुलकित कर दे
हे रूपहली नयनाभिराम पटंबर।
निशा गई छोड तिमिर को
आ गई कांतिमय किरण
छोड़ ओस स्मृत चिन्ह व्योम
बिखराकर है चली गई सोम।
खग ध्वनी से अंबर गूॅजी
शयित निन्द्रा हो गई भंग
हो गई हरीतिमा सोनजूही
स्वरर्णिम रह गई है दंग।
हे प्राची दिगन्त के रवि
निरत निदेश कर्णाधार
तू ही परित्राण औ चिरमहान
तू ही अमात्य और सत्य प्राण।