भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दिनरात / अनुभूति गुप्ता" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुभूति गुप्ता |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

17:56, 2 मई 2017 के समय का अवतरण

आओ बैठोः
क्षण भर समीप मेरे।

चलो
मिल जुलकर हल कर लेते हैं,
उलझे हुए से ये संवाद अपने।

जाँच लेते हैं,
घटते-बढ़ते हुए से
दिन-रात अपने।
खोज लेते हैं,
तरीका कोई अनोखा
कल्पनाओं की खदानों से।
ले आते हैं खींचकर,
पुरानी पड़ी हिचकियाँ
नम सिसकियाँ
खंडहर पड़े मकानों से।