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18:28, 2 मई 2017 के समय का अवतरण
अँधियारा जब-जब गहराता,
अपनी भौंहे बहुत चढ़ाता।
नींद उचट जाती माँ मेरी,
अनजाना भय खूब डराता।
ममतामयी गोद पाकर तेरी,
सुकून से सो मैं हूँ जाता।
अँधियारा तब नहीं डराता,
समीप जब-जब तुम्हें हूँ पाता।