भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"माँ / अनुभूति गुप्ता" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुभूति गुप्ता |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

18:28, 2 मई 2017 के समय का अवतरण

अँधियारा जब-जब गहराता,
अपनी भौंहे बहुत चढ़ाता।
नींद उचट जाती माँ मेरी,
अनजाना भय खूब डराता।
ममतामयी गोद पाकर तेरी,
सुकून से सो मैं हूँ जाता।
अँधियारा तब नहीं डराता,
समीप जब-जब तुम्हें हूँ पाता।