भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जब यह शीश टूटे / दिनेश जुगरान" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश जुगरान |अनुवादक= |संग्रह=इन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:09, 12 मई 2017 के समय का अवतरण

खिड़की के शीशे पर
टप-टप कर
बूंदें फिसलती रहीं
मैं तकता रहा
ख़ाली-ख़ाली आँखों से
समय जब काटने लगा
घड़ी में चाबी दे
उसे आगे खिसका दिया मैंने

वर्षों प्रतीक्षा की है
उस क्षण की
जब यह शीशा टूटे
और भिगो जाए
मेरे तपते मन को

शीशा टूटता नहीं
मैं तोड़ पाता नहीं
खिड़की के पर्दे गिरा
अंधेरा कर लेता हूँ कमरे में
टप-टप की आवाज़
फिर भी आती रहती है
मन को बाँधे रहती है