भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"इन्द्र / रामदेव रघुबीर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामदेव रघुबीर |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:53, 26 मई 2017 के समय का अवतरण
इन्द्र राक्षस मारन के,
जूझे दिन अरु रात।
राक्षस जूझे उसी तरह,
इन्द्र से बनै न बात॥
राखी तेरी महिमा न्यारी,
जो जाने होए भवसागर,
पार अति भारी॥
इन्द्र जाए गुरू बृहस् चरण में,
दिहले शीस झुकाए।
जंग में जूझत राक्षस दल से,
उससे पार न पाए॥
कहे इन्द्र अन्तिम जेग में,
गुरू जूझन को हम जाएँगे।
जय ना भया तो लड़ते लड़ते,
अपना भी अन्त मनाएँगे॥