भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हँसना चाहता हूँ / हरिदेव सहतू" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिदेव सहतू |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

18:22, 26 मई 2017 के समय का अवतरण

मैं कवि नहीं,
लेखक नहीं,
सूरीनाम के वनों के काँटों के बीच
खिलने वाली एक कली की तरह
खिलना चाहता हूँ।

खुश हो मुस्कुराता रहता
फैलाता सुगन्ध
हरता दुर्गंध
शान्त रखता अपने वनों को।

चुभता यदि मुझे काँटा
हँस देता मुखड़ा मेरा
कवच बन करता रक्षा मेरी
बरसती आँख मेरी
सँभल-सँभल कर हृदय मेरा
क्षमा कर देता।

खिलखिलाकर
हँसना चाहता हूँ
औरों के साथ
औरों के लिए
अपनों के साथ
अपनों के लिए।