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"पर्यावरण / प्रदीप प्रभात" के अवतरणों में अंतर

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पर्यावरण कहै छौं भाय
प्रणय-स्पर्श हरदम बॉटोॅ।
कहद्यै ऑक्सीजन हाथ जोड़ी
गाछ-विरीछ काटयोॅ होथौं कोड़ी।
गाछ-विरीछ के आलिंगन सेॅ
सीखोॅ प्यार निभाय लेॅ।
गाछ-विरीछ सेॅ सीखोॅ,
आन्धी-अन्हर सेॅ टकराय लेॅ।
जीवन केॅ नवप्राण दै छै
हरा-भरा धरती रोॅ जंगल।
जड़ी-बुटी, आरो फल-फूल,
करै छै वक्त पर खबरोॅ मंगल।
नै केकरौं सेॅ झगड़ा,
हिली-मिली केॅ छै रहै।
प्यार सेॅ रहै लेॅ सिखाबै छै
सबकेॅ ई संदेश दै छै।