भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मदारी एैलै (बाल कविता) / प्रदीप प्रभात" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप प्रभात |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:57, 5 जून 2017 के समय का अवतरण
देखोॅ एक मदारी एैलै,
साथेॅ दू जम्बूरा एैलै।
तीन मिनट तोय डमरू बजैल कै,
चार गॉव मेॅ खेल देखैलकै।
भरी-भरी झोरा चौॅर लानलकै,
रातीं सबनें मिली-जुली खैलकै।
गोला मुँह सेॅ पाँच निकालै,
हाथ मेॅ लै छोॅ-छोॅ बार उछालै।
सात आम रोॅ गाछ लगैलकै,
ओकरा सेॅ पेड़ा आठ बनैलकै।
बंदर केॅ नौ बार नचैलकै,
दस मिनट रोॅ खेल देखैलकै।
घोड़ा पर चढ़ै मदारी,
खैलकै सबनेॅ तीन-तीन थारीॅ।
हाथी साईकिल चलाबै छै,
सवारी जेकरोॅ बन्दर छै।