भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"घड़ी ढूँढकर लाए कौन? / कन्हैयालाल मत्त" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कन्हैयालाल मत्त |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:31, 28 जून 2017 के समय का अवतरण
घंटाघर की चार घड़ी,
एक दिखाई नहीं पड़ी!
भुल्लू भाई यों बोले-
'हम तो सारे दिन डोले,
जब देखा, तब तीन रहीं,
एक घड़ी खो गई कहीं!'
दादा बोले- 'रुको जरा,
है इसमें कुछ भेद भरा!
तुमने यह बात जो कही,
लगती उतनी नहीं सही।
मगर, तुम्हें समझाए कौन?
घड़ी ढूँढ़कर लाए कौन?'