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"वह स्त्री / रंजना जायसवाल" के अवतरणों में अंतर

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18:21, 28 जून 2017 के समय का अवतरण

बाहर जाने से पहले
कई बार ताले को
खींचकर देखती
रात में बार-बार उठकर
बंद दरवाजों को टटोलती
किसी पड़ोसन के आने पर
सशंकित रहती
वह स्त्री
सो रही है आज ‘बेफिक्र’
सारी चिंताएँ
क्या जीने के लिए होती हैं?