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"कैसी होगी दुनिया / सोनी पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर

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09:21, 29 जून 2017 के समय का अवतरण

मैंने सबसे पहले
छिपाना सीखा
आँसू
फिर दर्द
फिर जरुरतों का
घोंटती गयी गला
और एक दिन भूल गयी
कि मैं भी कुछ थी
ये एहसास बड़ा विचित्र था
कुछ होने का
कभी सोचने की फुर्सत ही नहीं मिली
जब भी समय मिला
माँ थी
पत्नी थी...बहू और बेटी थी
सब थी
बस नहीं थी तो मैं
और इन दिनों
उफनने लगा है मन
जैसे उफनता है दूध
एक परत उफनती हुई
बहने लगी है
बहुत चिकनी है
इसी चिकनाई में कैद रही
सबको चिकनी सी गुड़िया
सोचती हूँ
मेरी चिकनाई उतरते
खुरदुरी, भोथर औरत जो बची
कैसी होगी दुनिया?