भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"छंद 6 / शृंगारलतिकासौरभ / द्विज" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=द्विज |अनुवादक= |संग्रह=शृंगारलति...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

16:40, 29 जून 2017 का अवतरण

दोहा

(भ्रमरावली के गुंजार से संभ्रम-निवारण का वर्णन)

संभ्रम अति उर मैं बढ़्यौ, रह्यौ नहीं कछु ग्यान।
मधुकरीन-मुख ता समै, पर्यौ सबद यह कान॥

भावार्थ: ऐसा चित्त में भ्रम बढ़ा कि ज्ञानशून्य सा हो गया, इतने ही में भ्रमरियों के समूह के गान से यह शब्द कानों में सुनाई पड़ा।