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"रोज़ थोड़ा पिघल रहा हूं मैं / ध्रुव गुप्त" के अवतरणों में अंतर

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हम हाज़िर हैं हाथ उठाए
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रोज़ थोड़ा पिघल रहा हूं मैं
सपना जहां, जिधर ले जाए
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मेरा चेहरा बदल रहा हूं मैं
  
दरवाज़े पर आस टंगी है
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मुझको कोई कुरेदकर देखे
खिड़की पर लटके हैं साए
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न बुझा हूं, न जल रहा हूं मैं
  
तन्हाई में शोर था कितना
+
मेरा आग़ाज कब मुक़र्रर है
चीखो तो आवाज़ न आए
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बारहा कल पे टल रहा हूं मैं
  
हम सड़कों पे खड़े रह गए
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यूं गुज़रना हुआ है रिश्तों से
सड़कों ने कल धूल उड़ाए
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जैसे रस्सी पे चल रहा हूं मैं
  
हर कंधे पर बोझ है कितना
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मेरे हिस्से का आसमां है कहीं
कौन कहां दो ख़्वाब टिकाए
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अब तलक बेदख़ल रहा हूं मैं
  
उतनी क़ीमत है खुशियों की
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मुझको जाने कहां पहुंचना है  
हमने जितने दर्द कमाए
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गिर रहा हूं, संभल रहा हूं मैं
  
एक तसव्वुर तो ऐसा हो  
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तेरे सिवा भी हो ज़हां शायद
सर रख दूं तो नींद आ जाए
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तुझसे बाहर निकल रहा हूं मैं
  
दिल सबके शीशे जैसे हों
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मेरा मक़ता अभी कहा न गया
दर्द उठे तो आंख नहाए
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नामुकम्मल ग़ज़ल रहा हूं मैं
 
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आज चैन से जी लेने दो
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क़सम उसे जो याद आ जाए
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11:41, 2 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

रोज़ थोड़ा पिघल रहा हूं मैं
मेरा चेहरा बदल रहा हूं मैं

मुझको कोई कुरेदकर देखे
न बुझा हूं, न जल रहा हूं मैं

मेरा आग़ाज कब मुक़र्रर है
बारहा कल पे टल रहा हूं मैं

यूं गुज़रना हुआ है रिश्तों से
जैसे रस्सी पे चल रहा हूं मैं

मेरे हिस्से का आसमां है कहीं
अब तलक बेदख़ल रहा हूं मैं

मुझको जाने कहां पहुंचना है
गिर रहा हूं, संभल रहा हूं मैं

तेरे सिवा भी हो ज़हां शायद
तुझसे बाहर निकल रहा हूं मैं

मेरा मक़ता अभी कहा न गया
नामुकम्मल ग़ज़ल रहा हूं मैं