भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"चलो कविता / रंजना जायसवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना जायसवाल |अनुवादक= |संग्रह=ज...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
10:30, 4 जुलाई 2017 के समय का अवतरण
मेरी कविता की किताब
छपकर
बिकेगी महंगे दामों
किन हाथों में पहुंचेगी?
नहीं बिकी तो
चुक जाएगी उसकी जरूरत?
इसलिए कविता
चलो,चौराहे पर
जहां दिनभर बिकने की आस में
खड़े होते हैं
गाँव से आए नौजवान
सवारियों की तलाश में
रिक्शे वाले
ठेले लगाए खड़े होते हैं
गरीब
जिनकी झुग्गियाँ
शहर की सुंदरता के लिए
उजाड़ दी जाती हैं
चलो कविता
तुम्हारी जगह
उन्हीं लोगों के बीच है