भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पुरबैया / मालेश्वरानन्द आर्य" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भवप्रीतानन्द ओझा |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

13:41, 14 जुलाई 2017 का अवतरण

पुरबा बत्तास बहै पुरबैया।
बहै पुरबैया॥

गंगा के तीरॅ पर मछुआरिन टोली,
बरसि रहै सर-सर-सर सावन के डोली,
एक सखी दोसरा सें बोलै उमंग भरी,
सिहरलै परान हमरॅ हाय दैया।
बहै पुरबैया॥

बीचहिं मझधार में डेब लहराबै॥
बिरहा के तानॅ पर मल्लहवा गाबै॥
खेबी केॅ नैयाकेॅ बीच से किनार करी,
हिरदय हुलास करै हो हैया।
बहै पुरबैया॥

नदिया किनारा में पपिहा पुकारै,
बरसाती दिनॅ के पिरितिया सुकारै॥
गाछी के फुनगी पर बैठी केॅ डाल धरी,
चहकै चिरैयाँ चिन चू चैया!!
बहै पुरबैया॥

रात के अन्धरिया में झिंगुर झनकारै।
चपला के चपल नैन घूंघट उघारै॥
दादुर के सोर पर बदरा के शोर पर,
नाचै मयुरा मन भरमैया
बहै पुरबैया॥

टुटली मड़ैया के टटिया सुहाबै।
बनिहारी करिकेॅ मजूर सुख पाबै॥
ढोलक के ताल संग बाजै करताल चंग,
नाचै सब हिलि-मिलि केॅ ता-थैया।
बहै पुरबैया॥

लह लह गुमान भरी धान लहराबै।
धरती पर कास झूली हास बिखराबै।
बंशी के तानॅ पर चरहबा गानॅ पर,
डकरै वथानॅ पर छै गैया।
बहै पुरबैया॥

पखरु के पुरबा से हिया हुलसाबै।
धरती के सान बढ़ल लछमी बसाबै॥
सावन में साँस भरी अगहन के आस धरी,
घर में किसान मगन हो भैया।
बहै पुरबैया॥

नइकी सुहागिन कें अंखिया फरकै।
पावस के रिमझिम में छतिया धड़कै॥
आसिन में पाहुन के आबै के नाम सुनी,
छमकै छोहरिया छम छुम छैया।
बहै पुरबैया॥