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"पहाड़ पर चढ़ना / स्वाति मेलकानी" के अवतरणों में अंतर
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पहाड़ पर चढ़ने के लिए
पीठ झुकाकर चलना पड़ता है
देखना पड़ता है
जमीन को
पर
आँख चोटी पर गढ़ी रहती है।
ऊँचाई का अंदाज लगाकर
खर्च करनी पड़ती है
अपनी ताकत
इस तरह
कि वह बनी रहे लगातार
बच सके चोटी पर पहुँचने तक
और
उसके बाद भी।
पहाड़ की ऊँचाई पर
संभालना पड़ता है खुद को
क्योंकि
पहाड़ो के नीचे
गहरी खाइयाँ होती है।