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"पहाड़ में आग / स्वाति मेलकानी" के अवतरणों में अंतर
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जलते पहाड़ों के ऊपर
चमकता चाँद
चंद तारों के दंभ से घिरा
मुसकुराता है
और
वीरान रात में चीखते
चीड़ देवदार बुरांश के साथ
पहाड़ जल रहे होते हैं।
पर
हो ही जाती है सुबह
और लील जाता है सूर्य
आग को
रात को
चाँद को
जब पहाड़ जलते हैं
तो कुछ शेष नहीं रहता।