भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अहसास / तुम्हारे लिए / मधुप मोहता" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधुप मोहता |अनुवादक= |संग्रह=तुम्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 26: पंक्ति 26:
 
तुम्हें आग़ोश में लें
 
तुम्हें आग़ोश में लें
 
किसी सपने की बाँहों में समेटें
 
किसी सपने की बाँहों में समेटें
बाँहांे में समेटें तुम्हें
+
बाँहों में समेटें तुम्हें
 
चलो फिर से समेटें।
 
चलो फिर से समेटें।
 
</poem>
 
</poem>

14:24, 9 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण

चलो फिर से समेटें
तुम्हारी मुसकराहट इस नज़र में
और खुशबू पत्तियों की एक पुड़िया में
तुम्हारे गेसुआंे को हाशियों पर बिखर जाने दें
और मेहँदी से रचें इक नज़्म
पिरोएँ लफ़्ज़ पायल में
रुनझुन गुनगुनाने दें
तुम्हारी याद के जुगनू समेटें अँजुली भर लें
तुम्हारे रंग सपनों में भरें
पलकों में समेटें तुम्हें
चलो फिर से समेटें
तुम्हारे रेशमी अहसास साँसों में
और तुम्हारा लम्स पहनें उँगलियों में,
तुम्हारे दर्द को फिर धड़कनों में उतर जाने दें
और जला लें दिल के मयखाने में
तुम्हारे ग़म की शम’अ
झिलमिलाने दें
तुम्हें आग़ोश में लें
किसी सपने की बाँहों में समेटें
बाँहों में समेटें तुम्हें
चलो फिर से समेटें।