भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"घुप अँधियारे में / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=आ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:22, 30 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण
घुप अँधियारे में
सपनों ने
लिया तुम्हारा नाम - हँसे
समझ गये हम
ली है तुमने अँगड़ाई सोते-सोते
हमने देखा आसमान में
तारों को आपा खोते
फूली कहीं
रात की रानी
और देह में गीत बसे
पूनो नहीं - अमावस है यह
फिर भी सागर उमड़ रहा
भीतर एक नेह का सोता
ऊभ-चूभ कर खूब बहा
हम भी लेटे रहे
सेज पर
बाँहों में ऋतुराज कसे
मीठी छुवन अँधेरे की है
और तुम्हारी भी, सजनी
हम दोनों के बीच बसी जो
महक हुई है और घनी
अंग-अंग में
बिना देह के
देवा के हैं बान धँसे