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"कमरे में तुम थीं / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर
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छत पर कल
रात झरी पूनो की चाँदनी
कमरे में तुम थीं
सुबह हमें आँगने
परियों के पंख मिले
कनखी का जादू था
चंपा के फूल खिले
दिखी हमें
बाहर थी ठगी-खड़ी बनी-ठनी
कमरे में तुम थीं
धूप-छाँव के घेरे
सोनल आकाश हुआ
बौराया था वसंत
तुमने था उसे छुआ
दिखीं तभी
घास पर सोने की बिछीं कनी
कमरे में तुम थीं
सोच रहा आइना -
कैसा यह अचरज है
बाहर है चाँद खड़ा
कमरे में सूरज है
समझ नहीं पाया वह
किसने थी जोत जनी
कमरे में तुम थीं