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18:47, 15 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
हर रोटी में बेलती है
एक कविता
तवे पर सेंकती है,एक आह
गैस के बर्नर पर
आह गिरते ही
फूल जाता है दर्द
उसे घी की नरमाई से
छुपाने का जतन कर
परोस देती है,
सुख की थाली में
इतनी रोटियाँ खाते-खाते
पढ़ लीं तुमने कितनी ही कविताएँ.