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"शरारती नज़्म / आनंद खत्री" के अवतरणों में अंतर

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14:07, 6 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण

वो कहती ही नहीं थी
जो मैं उससे कई बार
सुनना चाहता था
उसकी पहचान
दर्ज़ कराना चाहता था।

लम्बी मुस्कराहटें
खर्च हुई हर बार
- कुछ ज़ाहिर ना हुआ
पर ये जज़्बात उसको
बेचैन ज़रूर करते रहे

अधलिखा सा आज मैंने उसको
फिर फिर गुनगुनाया
खोखला- अधूरा कर गयी थी वो।

इसलिए आज उस नज़्म से
मैंने दोस्ती तोड़ दी।