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"पिंजरे के तार तोड़कर / एक बूँद हम / मनोज जैन 'मधुर'" के अवतरणों में अंतर

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18:28, 29 जनवरी 2018 के समय का अवतरण

चले गए बाबूजी
घर में
दुनिया भर का
दर्द छोड़कर

शूल सरीखी, नजर बहू की
बोली लगती नदी लहू की
बेटा नाजुक हाल देखकर
चल देता है, दृष्टि मोड़कर

ताने सुनती, कैसे-कैसे
अम्मा शिलाखण्ड हो जैसे
लिए गोद में कुंठा बैठी
अपने दोनो हाथ जोड़कर

गहन उदासी अम्मा ओढे
शायद ही अब चुप्पी तोड़े
चिड़िया-सी उड़ जाना चाहे
तन पिंजरे के तार तोड़कर