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"दुःस्वप्न / संजीव ठाकुर" के अवतरणों में अंतर

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14:09, 23 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण

कल रात
नींद में मैंने
पूरा घर
अपने सर उठा लिया
भाई को गलियाया
बहन को पीटा
पिताजी एक कोने में दुबके खड़े थे!
माँ फदकने लगीं कुछ
आक्रोश में मैंने डंडा उठा लिया।
नींद खुल गई अचानक, शुक्र था!
मैं थर-थर काँप रहा था!!