भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पत्थर दिल / निवेदिता झा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निवेदिता झा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:54, 26 मार्च 2018 के समय का अवतरण
जब भी बारिश होती
पठार मुस्कुरा उठता
उसकी तलछटी पर होगीं हरी दूभ
खुखड़ी और बकरियाँ
थोडा हँसेगी बतियायेगीं
मुंह चिढाती निकल नहीं जाएगीं
बारिश होती दहल जाता कोयला
उसके आँगन में भरा रहेगा जल
परेशानी में रहेगें मजदूर
पत्थर दिल वह नहीं बोल पाएगा दो शब्द
नदी नाले अँधे कूंए सब बोलने लगेगें
हल के चलते हीं अजगर चला जाएगा दूर
समय तो घडियाल बजाएगा ही
कूजु, घाटो की खादान से
निकलेगीं सखी सहेलियाँ
और मांदर के थाप पर उलाहना देती...
पत्थर दिल हो तुम अब भी।