"म्यूरल / मुक्ता" के अवतरणों में अंतर
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11:18, 2 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण
कैसा था वह अंधेरा
जो खुद पगडंडी बन
ले आया मुझे उजाले में
अभी भी यहाँ वही मौसम है
जो तुम्हारे जाने के बाद था
तुम्हारे पत्रों में वह मौसम
कुछ अधिक खुशनुमा होता है
याद आती हैं कुछ सीढ़ियाँ, कुछ पेंटिंग्स
और... कुछ तस्वीरें
जिन्हें उतारना शेष रहा
वह म्यूरल जिसमें मीना साकी से बड़ा था
उस पूरी गैलरी का तामझाम
बंगाली बाबू की विरहणी से छोटा था
हम उस नाटक का हिस्सा बनने को तैयार न थे
जिसका रिहर्सल सामने बखूबी चल रहा था
उसमें कुछ तलवारें थीं, मार्शल आर्ट, टाइकवांडो
जैसे कुछ दाँव पेंच
हमारे पास थीं कुछ कवितायें
उन कविताओं का मौसम
आज जैसा ही संजीदा था
तुम्हारे पत्र में भी एक कविता है
कविता में उस पेंटिंग के अक्स हैं
जहाँ लाल गुलाब झरने के बीच
तिरछा झुका था
और वह झरना...
अक्सर मेरे पास से गुजरता है।